चरसी
घाट किनारे खाट पसारे,
धुंद से ओझल, नींद से बोझिल |
समझ लिया तो जीव जटिल वो,
न समझा तो पत्थर है ||
प्राण पिरोये, रक्त समेटे,
कश लगाए, होश सधाए |
निर्मोही गंगा के मत्त के,
ताक में यह निशाचर है ||
धुंद से ओझल, नींद से बोझिल |
समझ लिया तो जीव जटिल वो,
न समझा तो पत्थर है ||
प्राण पिरोये, रक्त समेटे,
कश लगाए, होश सधाए |
निर्मोही गंगा के मत्त के,
ताक में यह निशाचर है ||