दूर
अकड़ में अपनी पसरे
अलसाए पहाड़ हैं,
पहाड़ों से सरकती धून्ध है
उस से उपर की जानिब झाँकते
बूढ़े, पुराने पेड़ हैं
जिनके पैरों से होकर जाती है
नशे में धुत
लड़खड़ाती एक सड़क
सड़क से सटकार
भटके मुसाफ़िर की तरह
रास्ता पूछती कच्ची गलियाँ
गलियों में माचिस की डिबिया जैसे मकान
मकानों से निकलते आदमी
जिनके चेहरों पे दास्तान है
उनके वजूद की
वजूद जिसपे एक परत ख़ौफ़ की भी है
ख़ौफ़ जिसे मैं पहचानता हूँ
मैं घर से कितनी दूर आया हूँ
फिर भी लगता है अपनों के बीच हूँ
ये डर ही शायद हमें
एक दूसरे से जोड़ता है
अलसाए पहाड़ हैं,
पहाड़ों से सरकती धून्ध है
उस से उपर की जानिब झाँकते
बूढ़े, पुराने पेड़ हैं
जिनके पैरों से होकर जाती है
नशे में धुत
लड़खड़ाती एक सड़क
सड़क से सटकार
भटके मुसाफ़िर की तरह
रास्ता पूछती कच्ची गलियाँ
गलियों में माचिस की डिबिया जैसे मकान
मकानों से निकलते आदमी
जिनके चेहरों पे दास्तान है
उनके वजूद की
वजूद जिसपे एक परत ख़ौफ़ की भी है
ख़ौफ़ जिसे मैं पहचानता हूँ
मैं घर से कितनी दूर आया हूँ
फिर भी लगता है अपनों के बीच हूँ
ये डर ही शायद हमें
एक दूसरे से जोड़ता है
मुझे वक़्त लगता है
मुझे वक़्त लगता है
बात कहने में
साथ चलने में
चुप रहने में
कह देने में
मुझे वक़्त लगता है
बात कहने में
साथ चलने में
चुप रहने में
कह देने में
मुझे वक़्त लगता है
रगों से दौड़ती खुशी जब
सीने को पिघलाके
चढ़ती है दिमाग़ पे
तो सब
कुछ पलों के लिए सुन्न होता है
लब घबराके
हड़बड़ाहट में
सख़्त किसी जेलर की तरह
लफ़्ज़ों पे निगरानी रखते हैं
गले की तह तक जाकर आवाज़ ढूँढना
शब्द के साथ बाँधकर परोसने में
मुझे वक़्त लगता है
सीने को पिघलाके
चढ़ती है दिमाग़ पे
तो सब
कुछ पलों के लिए सुन्न होता है
लब घबराके
हड़बड़ाहट में
सख़्त किसी जेलर की तरह
लफ़्ज़ों पे निगरानी रखते हैं
गले की तह तक जाकर आवाज़ ढूँढना
शब्द के साथ बाँधकर परोसने में
मुझे वक़्त लगता है
मुझे वक़्त लगता है
अपने दिल की गहराई महसूस करने में
मुझे वक़्त लगता है
अपनों की तन्हाई दूर करने में
भूलने में, याद रखने में
खिल के मुरझाने, मुरझा के खिलने में
अकेले रास्ते पर अकेले चलने में
नये माहौल में ढलने में
ये सब समेट कर तुमसे बाँटने में
मुझे वक़्त लगता है
आपके वक़्त में से कुछ वक़्त चाहिए
ये वक़्त माँगने में भी
मुझे वक़्त लगता है
अपने दिल की गहराई महसूस करने में
मुझे वक़्त लगता है
अपनों की तन्हाई दूर करने में
भूलने में, याद रखने में
खिल के मुरझाने, मुरझा के खिलने में
अकेले रास्ते पर अकेले चलने में
नये माहौल में ढलने में
ये सब समेट कर तुमसे बाँटने में
मुझे वक़्त लगता है
आपके वक़्त में से कुछ वक़्त चाहिए
ये वक़्त माँगने में भी
मुझे वक़्त लगता है
मेरा सवाल उलझा हुआ सही
मेरा सवाल उलझा हुआ सही तू सुलझा मुझको जवाब दे
तूने मुझसे ये क्यूँ कहा की प्यार है तो हिस्साब दे
तूने मुझसे ये क्यूँ कहा की प्यार है तो हिस्साब दे
ये सच्चे दिल का टूटना आँधियों का हुज़ूम था
तूने रात कैसे सौंप दी मेरे बोलते ही ख्वाब दे
तूने रात कैसे सौंप दी मेरे बोलते ही ख्वाब दे
हर मोड़ पर कई फ़ैसले साथ हमने किए मगर
हुआ क्या मेरी जान वो की तू हँसी के बदले मलाल दे
हुआ क्या मेरी जान वो की तू हँसी के बदले मलाल दे
तुझे याद दिल करे बहुत रात भर रोया करे
क्या करूँ बता के तू फिर काँधे पे सिर उतार दे
क्या करूँ बता के तू फिर काँधे पे सिर उतार दे
ज़िंदगी चोंच मारती है
ज़िंदगी चोंच मारती है
बेहद
बेरहम होकर
बेहिसाब बार
ज़िंदगी चोंच मारती है
बेहद
बेरहम होकर
बेहिसाब बार
ज़िंदगी चोंच मारती है
वक़्त के पिंजरे में बंद
सब मुर्गे अपने जाने का इंतेज़ार कर रहे हैं
और आँखों में उम्मीद लिए
एक दूसरे को देख रहे हैं
ये सोचकर
की कोई तो बचेगा
किसी की तो जान बक्शी जाएगी
सब मुर्गे अपने जाने का इंतेज़ार कर रहे हैं
और आँखों में उम्मीद लिए
एक दूसरे को देख रहे हैं
ये सोचकर
की कोई तो बचेगा
किसी की तो जान बक्शी जाएगी
पिंजरे में किसी के भी चलने पर
उठ के चल देते हैं उसके पीछे
अपनी पहचान बनाने के लिए
खड़े होते हैं
वो भी झुंड में
उठ के चल देते हैं उसके पीछे
अपनी पहचान बनाने के लिए
खड़े होते हैं
वो भी झुंड में
आज़ादी की सीमा लाँघते हैं
तो किसी का दिल दुखाते हैं या
अपना ही दिल तोड़ते हैं
भूल जाते हैं
ज़िंदगी चोंच मारती है
घायल
गुमसूम
गुमनाम अंधेरे में
बेहोश छोड़कर
हर सुबह फिर उगते सूरज के साथ
बांग भरती है
ताक़ि फिर चोंच मार सके
तो किसी का दिल दुखाते हैं या
अपना ही दिल तोड़ते हैं
भूल जाते हैं
ज़िंदगी चोंच मारती है
घायल
गुमसूम
गुमनाम अंधेरे में
बेहोश छोड़कर
हर सुबह फिर उगते सूरज के साथ
बांग भरती है
ताक़ि फिर चोंच मार सके
दोनो खिड़कियाँ
वो दोनो खिड़कियाँ
जुड़वा बहनें हैं
और दोनो को इसी बात से
तकलीफ़ है
जुड़वा बहनें हैं
और दोनो को इसी बात से
तकलीफ़ है
बचपन से आज तक
झगड़ा ख़तम नहीं हुआ दोनों का,
मसले किस तरह बढ़ते गये हैं
पूछिए मत
हर छोटी बात पे लड़ती हैं
झगड़ा ख़तम नहीं हुआ दोनों का,
मसले किस तरह बढ़ते गये हैं
पूछिए मत
हर छोटी बात पे लड़ती हैं
घर की मालकिन अगर पहना दे
किसी एक को नये पर्दे
तो दूसरी,
सारा दिन सिसकियाँ भरती है
कूड़ती है
हवा से शिकायत करती है
और खड़-खड़ाके कुछ ना कुछ
बड़-बड़ाती रहती है
वहीं दूसरी मामला शांत करने की बजाए
रेशमी फ्रॉक सा
उड़ती है परदा
उसी हवा के सहारे मौज करती है
उसे और चिढ़ाती है
किसी एक को नये पर्दे
तो दूसरी,
सारा दिन सिसकियाँ भरती है
कूड़ती है
हवा से शिकायत करती है
और खड़-खड़ाके कुछ ना कुछ
बड़-बड़ाती रहती है
वहीं दूसरी मामला शांत करने की बजाए
रेशमी फ्रॉक सा
उड़ती है परदा
उसी हवा के सहारे मौज करती है
उसे और चिढ़ाती है
पर दोनों हुमेशा से इतनी
लड़ाकू नहीं थी
चार बरस पहले
जब गली के किसी बच्चे की
गेंद जा लगी थी एक को
तो दूसरी की जान हाथ में आ गयी थी
बड़ी डांट लगाई थी उसने
सबको बहुत कोसा था
लड़ाकू नहीं थी
चार बरस पहले
जब गली के किसी बच्चे की
गेंद जा लगी थी एक को
तो दूसरी की जान हाथ में आ गयी थी
बड़ी डांट लगाई थी उसने
सबको बहुत कोसा था
फिर शरारत के नाम पे
पिछली दीवाली में
सरक के चुप छाप पैरों के
नीचे से
धाड़ से गिराया था पुताई वाले को
कुंडीयाँ बजा के दोनों खूब हँसी थी
पिछली दीवाली में
सरक के चुप छाप पैरों के
नीचे से
धाड़ से गिराया था पुताई वाले को
कुंडीयाँ बजा के दोनों खूब हँसी थी
अब यही याद करेंगी
एक दूसरे के बारे में
जैसे ही फागुन गुज़रेगा
सुना है,
घर वाले एक को तोड़ कर
दरवाज़ा बना रहे हैं
एक को विदा कर रहे हैं
लॉन में आना जाना आसान होगा
बड़ी मालकिन कह रही थी
पड़ोसी से
एक दूसरे के बारे में
जैसे ही फागुन गुज़रेगा
सुना है,
घर वाले एक को तोड़ कर
दरवाज़ा बना रहे हैं
एक को विदा कर रहे हैं
लॉन में आना जाना आसान होगा
बड़ी मालकिन कह रही थी
पड़ोसी से
शायद हो भी जाए सहूलियत
पर अकेले उस लॉन को ताकना
बड़ा मुश्किल होगा उस दूसरी
जुड़वा खिड़की के लिए
पर अकेले उस लॉन को ताकना
बड़ा मुश्किल होगा उस दूसरी
जुड़वा खिड़की के लिए
रिश्ते कितने ही कड़वा क्यूँ ना हों
उनके जाने के बाद
हर चीज़ पहले सी नहीं रहती
उनके जाने के बाद
हर चीज़ पहले सी नहीं रहती
अनुभूति
मैं साहिल छोड़के जा रहा हूँ
मैं समंदरों को अपना रहा हूँ
मैं लहरों से रिश्तों की चाह में
तूफ़ानों को भी गले लगा रहा हूँ
मैं समंदरों को अपना रहा हूँ
मैं लहरों से रिश्तों की चाह में
तूफ़ानों को भी गले लगा रहा हूँ
ये इश्क़ जो दरिया से मैंने कर लिया है
एक सुनेहरा सूरज अपने
अंदर भर लिया है
अब सवेरा ही सवेरा होगा
कश्ती शाम की जहाँ भी रुकेगी
रात किसी मेहमान की तरह
ठहर कर चली जाएगी
एक सुनेहरा सूरज अपने
अंदर भर लिया है
अब सवेरा ही सवेरा होगा
कश्ती शाम की जहाँ भी रुकेगी
रात किसी मेहमान की तरह
ठहर कर चली जाएगी
मैं बीच दरिया में अपने किनारे पा रहा हूँ
मैं अपनी गहराई तलाश करके
चेहरे पे अपने सज़ा रहा हूँ
मैं दुनिया में फिर से समा रहा हूँ
मैं जो नहीं था वो सब भुला रहा हूँ
मैं साहिल छोड़के जा रहा हूँ
मैं समंदरों को अपना रहा हूँ
मैं लहरों से रिश्तों की चाह में
तूफ़ानों को भी गले लगा रहा हूँ
मैं अपनी गहराई तलाश करके
चेहरे पे अपने सज़ा रहा हूँ
मैं दुनिया में फिर से समा रहा हूँ
मैं जो नहीं था वो सब भुला रहा हूँ
मैं साहिल छोड़के जा रहा हूँ
मैं समंदरों को अपना रहा हूँ
मैं लहरों से रिश्तों की चाह में
तूफ़ानों को भी गले लगा रहा हूँ
काँच की तरह
काँच की तरह
रिश्ता टूटा नहीं था हमारा
बस उसके सिरे खुल गये थे
रिश्ता टूटा नहीं था हमारा
बस उसके सिरे खुल गये थे
तुम ढूँढते रहे दरारें
मैं चटकने की आवाज़ करती रही याद
तुमने फेरे हाथ कई बार खातों से
जो हमने एक दूसरे को लिखे थे
ये सोच कर की
चूर रिश्ते के नुकीले किसी टुकड़े से
हाथ लगेगा
तो खून निकलेगा
और सब साबित हो जाएगा
पर तुम्हें तो खरोंच तक नहीं आई
मैं चटकने की आवाज़ करती रही याद
तुमने फेरे हाथ कई बार खातों से
जो हमने एक दूसरे को लिखे थे
ये सोच कर की
चूर रिश्ते के नुकीले किसी टुकड़े से
हाथ लगेगा
तो खून निकलेगा
और सब साबित हो जाएगा
पर तुम्हें तो खरोंच तक नहीं आई
काँच की तरह
रिश्ता टूटा नहीं था हमारा
बस उसके सिरे खुल गये थे
जैसे खुल जाते हैं रोशनी के रात से
और सिरे तो फिर जुड़ जाते हैं
हाँ मगर मंज़ूरी लाज़मी होती है
दोनों सिरों की इसमें
मेरी थी
तुम्हारी नहीं
रिश्ता टूटा नहीं था हमारा
बस उसके सिरे खुल गये थे
जैसे खुल जाते हैं रोशनी के रात से
और सिरे तो फिर जुड़ जाते हैं
हाँ मगर मंज़ूरी लाज़मी होती है
दोनों सिरों की इसमें
मेरी थी
तुम्हारी नहीं
एक पुल और हमारा रिश्ता
ये दो पहाड़ों को जोड़ता
जो एक पुल है
मुझे याद दिलाता है
हर उस रिश्ते की
जो मैंने जिया है
जो एक पुल है
मुझे याद दिलाता है
हर उस रिश्ते की
जो मैंने जिया है
सीने के बीचों बीच से निकलता है
सीने के बीचों बीच उतरता
ये पुल
किसी धड़कन सा शोर करता है
हवा के गुज़रने पर
और ज़ोरों से कांपता है
अंजान किसी बड़ी, भारी
मुश्किल के उतरने पर
सीने के बीचों बीच उतरता
ये पुल
किसी धड़कन सा शोर करता है
हवा के गुज़रने पर
और ज़ोरों से कांपता है
अंजान किसी बड़ी, भारी
मुश्किल के उतरने पर
पहाड़ दोनों के दोनों
शायद ये समझते हैं
इसीलिए दोनों सिरों से
उसे थाम लेते हैं
शायद ये समझते हैं
इसीलिए दोनों सिरों से
उसे थाम लेते हैं
रिश्ता हमारा भी
इस पुल की तरह ही था
बस पहाड़ों की ज़िद में
टिक नहीं पाया
वक़्त की गहरी खाई में
वो धड़कता, मुस्कुराता पुल
जा समाया
वो दो दिलों को जो
जोड़ सकता था
जोड़ नही पाया
इस पुल की तरह ही था
बस पहाड़ों की ज़िद में
टिक नहीं पाया
वक़्त की गहरी खाई में
वो धड़कता, मुस्कुराता पुल
जा समाया
वो दो दिलों को जो
जोड़ सकता था
जोड़ नही पाया
रिश्ता
उसने अपने हाथ
पानी को दे दिए
पानी को दे दिए
कुछ मुसाफिरों को
इक किनारे से दूसरे किनारे पर
उतरने के लिए
लहरों को साहिल पर
अपना घर बसाने के लिए
किसी के सताने पर किसी के
मुस्कराने के लिए
उसने अपने हाथ
पानी को दे दिए
इक किनारे से दूसरे किनारे पर
उतरने के लिए
लहरों को साहिल पर
अपना घर बसाने के लिए
किसी के सताने पर किसी के
मुस्कराने के लिए
उसने अपने हाथ
पानी को दे दिए
वो पानी चाहता है
उसे बहुत
बहुत शिद्धत से मोहब्बत करता है
थाम लेता है उसकी बाँह
जब भी वो पानी में हाथ डुबोता है
छोड़ती नहीं कलाई एक भी लहर
ये प्यार देख कर उसने
अपने हाथ पानी को दे दिए
उसे बहुत
बहुत शिद्धत से मोहब्बत करता है
थाम लेता है उसकी बाँह
जब भी वो पानी में हाथ डुबोता है
छोड़ती नहीं कलाई एक भी लहर
ये प्यार देख कर उसने
अपने हाथ पानी को दे दिए
आखरी साँस जब लेगा अपने हिस्से की
आखरी झगड़ा जब ख़तम करेगा
तो कलाई धीरे-धीरे पानी में घुलती हुई
हाथ को खा जाएगी
और यही पानी समा जाएगा उसकी राख को भी
तब पता चलेगा की प्यार पूरा हुआ है
आखरी झगड़ा जब ख़तम करेगा
तो कलाई धीरे-धीरे पानी में घुलती हुई
हाथ को खा जाएगी
और यही पानी समा जाएगा उसकी राख को भी
तब पता चलेगा की प्यार पूरा हुआ है
वो दोनो मिलेंगे
किसी दूसरे ज्न्म में कहीं
और उसे यकीन हो जाएगा
की उसने
अपने हाथ,
अपना मन
अपना तन
उसने अपने हाथ पानी को दे दिए
किसी दूसरे ज्न्म में कहीं
और उसे यकीन हो जाएगा
की उसने
अपने हाथ,
अपना मन
अपना तन
उसने अपने हाथ पानी को दे दिए
वापसी
वो घर अच्छा था जिसमें पैदा हुए थे
वो गोद ममता से भरी थी
सपनों की थपकीयाँ देती थी
वो गोद ममता से भरी थी
सपनों की थपकीयाँ देती थी
वो रास्ता अच्छा था
मंज़िल की फ़िक्र नहीं रखता था
आँगन में गोल-गोल घूमता था
पर उस छत के नीचे
उस रास्ते से गुज़र के
उस गोद में
अब लौटना मुमकिन नहीं
मंज़िल की फ़िक्र नहीं रखता था
आँगन में गोल-गोल घूमता था
पर उस छत के नीचे
उस रास्ते से गुज़र के
उस गोद में
अब लौटना मुमकिन नहीं
बहाना कह लीजिए, पर काम बहुत है
शहर में सुबह कम, शाम बहुत है
डूबने के सिलसिले में सिसकियाँ उबल्ती हैं
फॅक्टरी में मशीनें बनतीं हैं
और ज़िंदगी उधड़ती है
शहर में सुबह कम, शाम बहुत है
डूबने के सिलसिले में सिसकियाँ उबल्ती हैं
फॅक्टरी में मशीनें बनतीं हैं
और ज़िंदगी उधड़ती है
आए दिन ज़रूरी नुक़सानों की
फ़िरस्त बढ़ती जाती है
बिल चुकाने में पैसों के साथ-साथ
उम्र भी ख़र्च हो जाती है
फ़िरस्त बढ़ती जाती है
बिल चुकाने में पैसों के साथ-साथ
उम्र भी ख़र्च हो जाती है
वो सौदा अच्छा था
जहाँ चुप बैठने पे टॉफियाँ मिलती थी
शरारत करने पे डाँट के बाद
गरमा-गरम रोटियाँ मिलती थी
वो बरामदा अच्छा था
जहाँ दादी मेरी सर्दियों से महीनों पहले
एक स्वेटर मेरे नाप का बुनती थी
पर उस स्वेटर की छाती, बाज़ू, बिलस्ट के लिए घड़ी-घड़ी रुकना
अब मुमकिन नहीं है
जहाँ चुप बैठने पे टॉफियाँ मिलती थी
शरारत करने पे डाँट के बाद
गरमा-गरम रोटियाँ मिलती थी
वो बरामदा अच्छा था
जहाँ दादी मेरी सर्दियों से महीनों पहले
एक स्वेटर मेरे नाप का बुनती थी
पर उस स्वेटर की छाती, बाज़ू, बिलस्ट के लिए घड़ी-घड़ी रुकना
अब मुमकिन नहीं है
प्रमोशन की अफ़वाह है ऑफीस में
पद-कद सब बढ़ जाएगा
मुसीबतें जितनी लेके निकले थे
उनका हिस्साब बराबर हो जाएगा
पद-कद सब बढ़ जाएगा
मुसीबतें जितनी लेके निकले थे
उनका हिस्साब बराबर हो जाएगा
शादी
बादल का सहरा है
चुनर आसमानी है
चंचल नदी की छम-छम
पायल सी बँधी है
खिले-खिले फूलों से
सजी-धजी वादी है
पहाड़ों का मंडप है
पेड़ों की शादी है
चुनर आसमानी है
चंचल नदी की छम-छम
पायल सी बँधी है
खिले-खिले फूलों से
सजी-धजी वादी है
पहाड़ों का मंडप है
पेड़ों की शादी है
गूंजा कोहरा गानों से
सरके जो झरने मकानों से
घोले हवा ने बोल कई
मीठे-मीठे कानों में
हल्दी के बांद धूप से
धुन्ध घूंघट ज़रा उठाती है
पहाड़ों का मंडप है
पेड़ों की शादी है
सरके जो झरने मकानों से
घोले हवा ने बोल कई
मीठे-मीठे कानों में
हल्दी के बांद धूप से
धुन्ध घूंघट ज़रा उठाती है
पहाड़ों का मंडप है
पेड़ों की शादी है
साहिल से दूर
ये जो कश्ती लेके निकला है मांझी,
साहिल से दूर
इसकी आँखों की चमक बता रही है
आज खाली हाथ नहीं लौटेगा
हो कितनी भी तेज़ आँधी
कितना भी परेशान मौसम
ये अपनी मंज़िल ढूँढलेगा
पाएगा, जो भी चाहिए इसे
साहिल से दूर
इसकी आँखों की चमक बता रही है
आज खाली हाथ नहीं लौटेगा
हो कितनी भी तेज़ आँधी
कितना भी परेशान मौसम
ये अपनी मंज़िल ढूँढलेगा
पाएगा, जो भी चाहिए इसे
लहरों को बाँधने का ख़्वाब लिए
यूँ तो पहले भी काई बार चला है ये
डूबते सूरज को ज़रा देर से पानी में
सरकते देख समझा
भला आदमी है ये
भूला दिशा तो हवा ने
ख़ुस-फुसाके कानों में
बताया रास्ता आगे का
यूँ तो पहले भी काई बार चला है ये
डूबते सूरज को ज़रा देर से पानी में
सरकते देख समझा
भला आदमी है ये
भूला दिशा तो हवा ने
ख़ुस-फुसाके कानों में
बताया रास्ता आगे का
पर सवाल ये है
की आगे जाना कहाँ है?
की आगे जाना कहाँ है?
बहती नदी के साथ मंज़िल को जोड़ना
मंज़िल के पास जाना है
या मंज़िल से दूर होना?
जो मक़सद आज था
वो कल नही होगा
जो यक़ीनन यहाँ था कुछ देर पहले
वो चंद लम्हों में कहीं नहीं होगा
मंज़िल के पास जाना है
या मंज़िल से दूर होना?
जो मक़सद आज था
वो कल नही होगा
जो यक़ीनन यहाँ था कुछ देर पहले
वो चंद लम्हों में कहीं नहीं होगा
शहर का आदमी भी हर रोज़
निकलता है बाँध के मंज़िल अपनी
वक़्त की नदी से
क्या पाएगा शाम ढलने तक
क्या खोएगा
वो भी ना जाने किस तरह से
निकलता है बाँध के मंज़िल अपनी
वक़्त की नदी से
क्या पाएगा शाम ढलने तक
क्या खोएगा
वो भी ना जाने किस तरह से
कुछ सिलसिलों में चाहत
मंज़िल की ख़तम कर देनी चाहिए
ताक़ि जो ना सोचता हो दिल
इस सफ़र में वो भी पा सके
मंज़िल की ख़तम कर देनी चाहिए
ताक़ि जो ना सोचता हो दिल
इस सफ़र में वो भी पा सके
ये कश्ती लेके जो निकला है मांझी,
साहिल से दूर
माना उसकी आँखों में चमक है
मुझे फिर भी उसकी बेहद फ़िक्र है
ये जो कश्ती लेके निकला है मांझी,
साहिल से दूर
साहिल से दूर
माना उसकी आँखों में चमक है
मुझे फिर भी उसकी बेहद फ़िक्र है
ये जो कश्ती लेके निकला है मांझी,
साहिल से दूर