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मन की कोठर से...

मन की कोठर से... by
ओंकार नाथ त्रिपाठी

किताब के बारे में...

मन के अन्दर तरह तरह के उद्गार उठते रहते हैं जो कि मनुष्य के मन की स्वभाविक प्रक्रिया है। इन्हीं उद्गारों के शब्दों को संवेदनाओं के साथ सजाकर उन्हें काव्य के रुप में सहेज का प्रयास है 'मन की कोठर से....'। मेरी रचनाओं का भाव अगर किसी चरित्र जैसा लगता है तब यह एक संयोग मात्र है।

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मन की कोठर से...
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